तो अकेले में अधूरे चाँद से पूरे मन से बात की,
"दीवार" के स्वर में -
"खुश तो बहुत होगे,
इतने चाँद से चेहरों की आँख का तारा बनकर,
उनकी कुछ पूरी, कुछ अधूरी हसरतों का सहारा बनकर,
मुझे यक़ीन है,
सारी दुआएँ सलामती की ही थीं,
पर क्या तुम्हें यक़ीन है कि
वे किसी बिसरे प्यार के लिए नहीं,
वरन्
इसी भरे पूरे परिवार के लिए ही थीं?"
चाँद आज थोडा टेढ़ा था,
कुटिल मुस्कान ले बोला-
"बहुतों ने आज बलाएँ ली हैं,
उन हसरतों की तरफ से,
जिंदगी में दाखिल होकर पूरी हो गईं,
मगर
बहुतों ने आज दुआएँ माँगी हैं
उन हसरतों की तरफ से,
जिंदगी में दस्तक देकर अधूरी रह गईं."
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