गुरुवार, 23 मार्च 2017

छैल बटाऊ-मोहना रानी

"छैल बटाऊ-मोहना रानी : नाट्य रूप में अभिमंचित मध्यकालीन प्रेमगाथा"

छैल बटाऊ-मोहना रानी की कथा मुख्यतः दो रूपों में मिलती है।
पहली, छत्तीसगढ़ी रूप में,
दूसरी, पश्चिमोत्तर भारतीय रूप में.
सबसे पहले छत्तीसगढ़ी रूप-

पुराने जमाने में अवधे नगर की राजकुमारी थी-
मोहना.
पूरा नाम मोहना दे गोरी कईना.
उसकी खूबसूरत ऐसी थी कि
जो देखे, सम्मोहित हो जाए.
राजकुमारी अपने राज्य की रानी भी बन चुकी थी।

उस समय दिल्ली में मुगल बादशाह अकबर का शासन था.
दिल्ली के पांच फकीर विचरते हुए अवधे नगर पहुँचे.
मोहना रानी ने उनका स्वागत किया,
भिक्षा में अन्न-धन-वस्त्र दिया.
फिर चलते समय पूछा कि
क्या वे उसकी अमानत बादशाह अकबर को दे देंगे।

फकीरों ने हामी भर दी.
मोहना ने उन्हें अपनी सोने की मूर्ति दी,
आदमकद, अपनी प्रतिच्छवि.
लोकभाषा में वह मूरत दपकी थी.

फकीर मूरत लेकर दिल्ली पहुंचे,
वहाँ जब वे अकबर के दरबार में गये,
तो अकबर ने जब वह मूरत देखी,
तो विस्मित रह गया कि
कोई इतना भी सुंदर हो सकता है।

उसने फकीरों से पूछा कि
क्या मोहना रानी सचमुच इतनी ही सुंदर है.
फकीरों ने कहा कि 
यह तो कुछ भी नहीं है।
सोना चाँदी में तो दूसरे रंग कहाँ आ पाते हैं,
कंचन काया तो आ जाती है, पर देह की कोमलता कहाँ आ पाती है।
सच कहें, तो आपकी पान खाई जीभ की तरह तो लाल उसके तलवे हैं.

बादशाह को सौंदर्य की प्रशंसा ने जितना मोहित किया,
अंतिम में दी गई उपमा ने उतना ही क्षुब्ध कर दिया.
उन्होंने क्रुद्ध होकर कहा-
बदतमीज फकीरों,
बादशाह की जुबान को किसी के तलवों से मिलाते हो.
चलो फिर जुबान के लिए सच में कुछ दिनों तक पैरों तले रह कर देखो.

अकबर ने फकीरों को कैद करने का हुक्म दे दिया.
पर मन में मोहना रानी की मोहिनी मूरत बस गई.
अकबर ने बीरबल से चर्चा कर राज्य में यह घोषणा कर दी कि
जो भी मोहना रानी की सूरत-मूरत ले आएगा,
उसे वह आधा राजपाट दे देंगे।
सूरत-मूरत का तात्पर्य ऐसा चित्र था,
जो निर्वस्त्र हो.

मुनादी करने वाले नगाड़ा लेकर नगर-नगर, गाँव-गाँव घूम रहे थे,
किसी ने हिम्मत न दिखाई.
वहीं किसी गाँव में कोई छैल बटाऊ नामक युवक रहता था।
लोकभाषा में पूरा विवरण था- राड़ी माई बटाऊ टुरा.
इसका अर्थ हुआ कि बटाऊ किसी विधवा माँ का इकलौता पुत्र था.
माँ बहुत गरीब थी,
दूसरों के यहाँ चुकिया-पिसिया अर्थात् अनाज बीनने-पीसने का काम कर गुजारा करती थी।
एक छोटी सी झोपड़ी भर थी.
छैल बटाऊ भी राजघराने के पालतू पशु चराता था.
लोग उसे छैल बटोही कुँवर भी कहते थे.
वह सचमुच सदा यायावर और बटोही बना रहता,
अपनी ही धुन में मस्त,
नगर-नगर, गाँव-गाँव घूमता रहने वाला.
पान खाने का शौकीन था.
गाँव की लड़कियाँ व स्त्रियाँ गोबर से उपले व कंडे बनाती थीं,
वे अक्सर उसके पशुओं के गोबर लेने के लिए पान खिलाया करती थीं.

छैल बटाऊ ने जब नगाड़े वालों को पान का बीड़ा लिए घूमते देखा,
तो उसने उत्सुकतावश पान उठा कर खा लिया,
यह सोच कर कि शायद यह राजा के द्वारा किसी उछा मंगल अर्थात् पर्व पर वितरण किया जा रहा है
और यही आखिरी बचा है।

बाद में जब पता चला कि
पान खाने वाले को अवधे नगर की रानी मोहना की सूरत मूरत लानी है,
तो उसने बेहिचक चुनौती स्वीकार कर ली.
राजा के सैनिक उसे लेकर दरबार में आये,
तो राजा बोला-
ये गाँव का गँवार और अनपढ़ लड़का भला अवधे नगर पहुँचेगा
और पहुँच भी जाए, तो भला क्या वह रानी तक पहुँच पाएगा,
रानी तक पहुँच भी जाए, तो भला क्या वह रानी की सूरत-मूरत बनवाने की इजाजत पाएगा.

संदेह स्वाभाविक था,
पर छैल अपने निश्चय पर दृढ़ रहा.
उसके दृढ़ निश्चय को देख कर राजा ने उसे कुछ समय तक शिक्षण प्रशिक्षण के लिए राजमहल में ही रोक लिया.
अलग-अलग तरह की विद्याओं के लिए योग्य गुरु लगा दिये गये,
विभिन्न कौशलों के सामान्य प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षक लगा दिए गए,
कई कलाओं के लिए प्रतिष्ठित कलाकार नियुक्त कर दिये गये.
कुछ ही दिनों में वह अच्छा घुड़सवार और तीरंदाज बन गया.
गणित में इतना कुशल हो गया कि
मुट्ठी में रखी रेत के कण गिन कर बता दे.

जब प्रशिक्षण का कार्य पूर्ण हुआ,
तो बादशाह ने उसके शृंगार के लिए सुनार बुलवाए.
सुनार ने तमाम आभूषण बनाए,
छैल को पहना कर बादशाह को दिखाने ले गया.
बादशाह ने पूछा,
क्या इतने गहनों में छैल मोहना के बराबर लगेगा?

सुनार बोला,
नहीं जहाँपनाह, अभी तो चौदह और बीस का फासला है।
बादशाह बोला-
नहीं, तो फासला मिटा कर ले आओ.

सुनार और खूबसूरत गहनों में जुट गया.
छैल का दुबारा शृंगार कर ले आया,
बादशाह ने पूछा,
क्या अब इतने गहनों में छैल मोहना के बराबर लगेगा?
सुनार बोला,
नहीं जहाँपनाह, अब भी उन्नीस और बीस का फासला है।
बादशाह बोला-
तब ठीक है, आदमी और औरत में इतना तो फासला रहेगा ही.

अब छैल अवधे नगर जाने को तैयार था.
जाते समय बादशाह ने उसे कई चीजें दीं,
मंदराज नामक काबुली घोड़ा,
चन्द्रभान खांडा नामक तलवार
और सोने की मुहरों की थैली व थोकड़ा.

छैल शहसवार बना घर पहुँचा.
माँ पहचान ही न पाई.
जब छैल घोड़ा लिए द्वार से आँगन तक पहुंच गया,
तो वह बोली कि
काश कि आज मेरा बेटा मेरे पास होता,
तो यूँ कोई शहसवार बिना पूछे घर में दाखिल न हो जाता.

तब छैल ने बताया कि वह उसका बेटा ही है.
फिर उसने पीछे की सारी कहानी कह सुनाई।
माँ घबराई, पर उसे खुशी से विदा करने आई.
चलते समय उसके साथ एक पोटली में गुड़-चिउड़ा रख दिया,
ताकि बेटे को राह में भोजन की कुछ जरूरत पूरी हो सके.
छैल ने भी माँ के हाथों में सोने की मुहरों की एक पोटली रख दी,
ताकि उसके वक्त जरूरत काम आ सके.

छैल मंदराज घोड़े पर शहसवार बना,
चन्द्रभान तलवार लिए राजसी वेश में चलता गया.
अवधे नगर के पहले उसे सरलंका और परलंका देशों को पार करना पड़ा,
अंततः चुनौतियों व बाधाओं को पार करते हुए वह अवधे नगर पहुँचा.
वहाँ नगर के बाहर शराब बनाने वाले कलालों की बस्ती थी.
उनमें वह एक संपन्न कलाल के घर जा पहुँचा,
जिसका नाम सोड़ी कलाल था.
उस समय आदमी घर पर नहीं था,
दीपावली आने को थी,
नगर में जुए का माहौल था,
वह नगर जा चुका था।

सोड़ी की पत्नी सोड़ियानी ने छैल को राजा समझ कर उसका स्वागत किया.
छैल बटाऊ ने उससे सबसे पुरानी और तेज महुए की शराब माँगी.
सोड़ियानी ने उसे पंझारी नामक तेज शराब दे दी.
फिर बातों में पता चला कि
सोड़ी और सोड़ियानी बारह साल से विवाहित हैं,
उनकी कोई संतान नहीं है।
दोनों में कुछ ही समय में घनिष्ठता हो गई.
सोड़ियानी ने छैल बटाऊ से उसके आने का उद्देश्य पूछा,
तो उसने सब सच-सच बता दिया.
अंत में जब छैल बटाऊ ने सोड़ियानी से मोहना रानी से मिलने का रास्ता पूछा,
तो उसने उसे सहयोग का वचन दिया.

सोड़ियानी राजमहल में मदिरा लेकर जाती थी।
उसके साथ छैल भी वेश बदल कर जा पहुँचा.
वहाँ उसने झरोखे से मोहना रानी को देखा,
तो मंत्रमुग्ध हो गया.

बाद में पता चला कि
मोहना रानी बाग में कंकन कुइयाँ पर प्रात: स्नान करने आती हैं।
छैल बटाऊ ने राजमहल के उद्यान के सेवकों व सैनिकों को शराब पिला कर बेहोश कर दिया.
फिर वह कंकन कुइयाँ पर जा पहुँचा.
वहाँ उसने जब छिपकर मोहना रानी को स्नान करते देखा,
तो चुपचाप उनकी तस्वीर बना ली.

दीपावली के समय जब सब राजमहल को सजा रहे थे,
तब वह छल या कौशल से रनिवास जा पहुँंचा.
वहाँ जब दीप के प्रकाश में उसने मोहना की मोहिनी मूरत देखी,
तो उससे रहा नहीं गया.
उसने मधुर गीत गाकर मोहना के रूप और अपने प्रेम का वर्णन किया,
साथ ही उसमें अपना परिचय भी दिया.

मोहना ने पहले तो उस परदेशी अजनबी को देख भय व रोष प्रकट किया,
फिर जब उसने फकीरों के साथ बादशाह के पास उसकी मूरत जाने और उसे सब सच-सच बोलते पाया,
तो वह भी मोहित हो गई.

छैल बटाऊ और मोहना रानी मन ही मन एक दूसरे को प्रेम करने लगे.
परंतु इस बीच राजा को पता चल गया.
उन्होंने छैल बटाऊ की हत्या कर दी

छैल के वियोग में मोहना सती होने जा रही थी,
इसी बीच वहाँ से गुजर रहे शिव-पार्वती ने द्रवित होकर उसे जीवित कर दिया.
छैल बटाऊ व मोहना रानी दोनों सरलंका, परलंका होते हुए दिल्ली पहुँचे.
बादशाह अकबर ने दोनों का प्रेम देख कर विवाह करा दिया
और पाँचों फकीरों को भी कैद से आजाद कर दिया.
अंत में छैल बटाऊ-मोहना रानी आधा राज्य पाकर सुखपूर्वक रहने लगे.

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छैल बटाऊ-मोहना रानी की कथा संभवतः महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व बिहार में भी रही है, परंतु बहुत भिन्न रूप में. यह इस प्रकार है-

किसी समय में एक ब्राह्मण की एक सुंदर युवा पुत्री थी.
वह बिना विवाह के ही गर्भवती हो गई,
अत: सामाजिक मर्यादा के कारण उसके पिता ने उसे जंगल में छोड़ दिया।
पुत्री मर जाना चाहती थी,
किंतु वह गर्भवती थी.
वह वन में किसी तरह रहने लगी.
समय पर उसे एक पुत्र हुआ,
माता दीन दशा में थी.
संयोगवश एक चमार या चमड़े का काम करने वाला सज्जन व्यक्ति वन से गुजर रहा था.
उसने एक माँ को उसके नवजात शिशु के साथ भटकते देखा,
तो उसका परिचय पूछा.
सारी कहानी जान कर वह उसे अपनी पुत्री मानकर अपने घर ले आया.

बच्चा वहाँ पलने लगा.
उसका नाम रखा गया-
छैल बटाऊ.
शायद सुंदर होने के कारण छैल
और राह में मिलने के कारण बटाऊ.
जैसे ही कुछ बड़ा हुआ,
उसके रूप, पराक्रम व कौशल की बातें प्रसिद्ध होने लगीं.
ये बातें वहाँ के इठौरा राजा तक पहुँचीं,
तो उसने छैल बटाऊ को देखने के लिए उसके पिता को बुलाया.
राजा ने देखा कि
छैल बटाऊ के भीतर जो गुण व लक्षण हैं,
वे किसी ऊँचे कुल के दिख रहे हैं।
उन्होंने उसे धन व उपहार देकर छैल बटाऊ को अपनी सेवा में ले लिया।

इठौरा राजा की रानी बहुत सुंदर थी.
वह प्रतिदिन स्नानोपरांत जब आईने के सामने खड़ी होती थी,
तब अपने पिंजरे के तोते से पूछती कि
संसार में सबसे सुंदर कौन है.
तोता स्वामीभक्ति में कहता,
हमारी रानी से बढ़ कर कोई नहीं.

यह बात एक बार एक बिल्ली ने सुन ली.
उसने तोते को धमकाते हुए कहा कि
मोहना रानी के सामने तो तुम्हारी रानी कुछ भी नहीं.
आगे से अगर तुमने झूठ बोला,
तो तुम्हें खा जाऊँगी.

प्राणसंकट में पड़े तोते ने धर्मसंकट में सच स्वीकार कर लिया.
जब रानी ने पूछा,
तो बोला कि
आप सुंदर हैं,
पर मोहना रानी के सामने तो आप तलवे के बराबर हैं.

बात रानी को चुभ गई।
उसने कहा कि अब तो वह मोहना को देख कर रहेंगी.
विषाद से ग्रस्त होकर लेट गईं.
राजा ने हाल पूछा,
तो बोली-
सिरदर्द है, जो केवल मोहना रानी को देख कर ही दूर होगा,
चाहे वो आये या उसकी तस्वीर आये.

राजा अपनी रानी को सिर माथे बिठा कर रखता था।
उसने दरबार में घोषणा कर दी कि
जो भी मोहना रानी की तस्वीर लाएगा,
राजा आधा राज्य दे देगा.

संयोगवश जब और किसी ने चुनौती स्वीकार नहीं की,
तो छैल बटाऊ ने बीड़ा उठा लिया.
उसकी माँ ने जब सुना,
तो वह घबरा गई.
फिर बोली कि
जाने से पहले राजा से एक घोड़ा तो ले लो,
कुछ हथियार और तलवार तो ले लो,
कुछ साथ में सोने की मोहरें तो ले लो.

राजा ने छैल को ये सब चीजें दे दीं.
छैल निकलने को हुआ,
तो चलते समय माँ से बोला कि
कुछ खाने को दे दो.
जो कुछ पहले पहल मिले वही, दे दो.

माँ ने संयोगवश सत्तू निकालने के लिए घड़े में हाथ डाला,
तो वह नमक के घड़े में पड़ा.
छैल ने कहा,
चलो, अब अशुभ हो गया,
जो होगा, आगे देख जायेगा.

छैल लिली घोड़ी पर सवार होकर निकल पड़ा.
रास्ते में कुछ और अशुभ घटित हुए,
पर छैल चलता गया.

आगे किसी कदंब के पेड़ तले सुंदर युवतियों ने उसे छाँव में कुछ पल ठाँव लेने को कहा,
पर वह न रुका.

पता चला कि
मोहना रानी उमदा नगर में रहती थी,
वह एक सुंदर, किंतु विवाहिता युवती थी.
बचपन में उसने खेल-खेल में शिव को अपना पति मान लिया था।
किशोरी हुई,
तो उसका विवाह उमदा नगर में हो गया.
परंतु विवाह के बाद उसे दाम्पत्य सुख न मिला.
मोहना का पति संन्यासी बनकर बाहर चला गया
और ऐसे बारह या पंद्रह साल बीत चुके थे।
मोहना एक नीरस जीवन जीती रही.
घर में बूढ़ी सास थी, जो अंधी थी.

छैल बटाऊ उसके गाँव में आया.
संयोगवश उस दिन वह कुएँ पर पानी भरने आई हुई थी।
छैल बटाऊ प्यासा था.
पनघट पर जा पहुँचा.
छैल ने मोहना से प्यास बुझाने को कहा.
मोहना ने कहा कि
पानी पिलाने के लिए तो
घर में माँ, बहन, पत्नी होती हैं।
पराई औरतों से पानी क्यों माँगता है.
बात कुछ ठिठोली की थी,
छैल ने भी वैसा ही उत्तर दे दिया कि
मैं प्यासा हूँ और तुम्हारे पास ठंढा पानी है,
और फिर मैं कहाँ जाऊँ.
इस दौरान दोनों में बहुतेरे संवाद हुए,
नाज के, अंदाज के.
मोहना अपने घड़े को सोने का बताती,
जो मोतियों लगे जूड़े पर रखा जाता,
रेशम की डोरी से बाँधा जाता.

छैल ने कहा,
ये सब या तो झूठ है,
या मन का सपना भर है.
तुम्हारा घड़ा भी मिट्टी का है, ये देह भी माटी की है।
सब माटी के मोल बिक जाना है।

अंत में मोहना छैल के रूप, वाक्चातुर्य और वैभव से प्रभावित होकर कलश का जल पिलाने लगी.
वह स्वयं भी तो चिरतृषित थी.
पानी के घूँट के साथ छैल ने प्रीति के अमृत का भी स्वाद पाया.
दोनों में प्रेम हो गया.

मोहना छैल को लेकर अपने घर पर गई.
जब मोहना की सास ने सीढ़ियों पर दोहरी आहट सुनी,
तो उसको शक हो गया.
उसने कनफटा योगी को उसके सतीत्व के परीक्षण के लिए बुलवाया.
जोगी ने एक घड़े में किसी जहरीले साँप को डाल दिया।
फिर उसमें अपनी अँगूठी डाल दी
और मोहना से कहा कि
यदि वह धर्म से है,
तो उसको निकाल ले.

मोहना ने अपने आराध्य भुइया देवता और भवानी देवी को साक्षी मान कर वचन लिया कि
यदि मेरे जीवन में भोलेनाथ व परदेसी इन दो केे अतिरिक्त तीसरा पुरुष न आया हो,
तो साँप कुछ न करे.
मोहना की बात द्वयर्थक थी.
सास को उसके बचपन में शिव से विवाह की बात पता थी,
सो वह भी मान गई.
साँप ने भी उसे न डसा.
मोहना ने अँगूठी निकाल कर सास के आँचल में दे दी.

मोहना और छैल बैठ कर प्रेम भरी बातें करने लगे।
परंतु अचानक सालों का गया मोहना का पति लौट आया.
उसने दरवाजे पर आवाज दी.
समय बहुत बीत चुका था।
माँ ने पहचाना नहीं.
बोली कि
यहाँ तो अक्सर कोई मेरा बेटा बनकर आ जाता है।
मैं कैसे पहचानूँ.

तब मोहना के पति ने माँ को अपनी सारी पहचान बता दी,
यह कि कैसे कनफटा योगी की तरह उसके कान छिदे हैं,
कैसे उसके माथे पर जन्मजात टीका है,
उसकी हथेली में छ: उँगलियाँ हैं.
माँ को विश्वास हो गया.
फिर माँ ने उसे मोहना के चरित पर संदेह भी बता दिया.
सारी कथा सुनकर मोहना का पति मोहना के कक्ष में गया.
मोहना ने पति के आने की आहट सुनकर छैल को खिड़की से भगा दिया।

जब मोहना का पति मोहना के कक्ष में गया,
उसने वहाँ सोने की मुहरें रखी देखीं.
वह तलाश करता हुआ बाग में गया.
छैल केवड़ा की गाँछ या पेड़ के पीछे छिपा हुआ था।
मोहना के पति ने पेड़ को हिलाने की कोशिश की,
पर वह न हिला.
तब मोहना के पति ने पेड़ को उसके द्वारा सींचे जाने का वास्ता दिया.
पेड़ ने अपनी आड़ हटा ली,
मोहना के पति ने निहत्थे छैल की तलवार हत्या कर दी.

छैल बटाऊ की हत्या कर मोहना का पति चुपचाप घर में लौट आया.
मोहना को संदेह हुआ.
वह कुछ समय बाद बाग में गई,
तो उसने छैल को मृत पाया.

मोहना ने बाग के माली को चंदन की चिता सजाने को कहा,
उस पर छैल बटाऊ का शव रखा,
फिर उसकी जलती चिता में बैठ कर स्वयं भी प्राण दे दिया.
मरने से पहले उसने अपने पालतू तोते से कहा कि
जाओ और जाकर इठौरा राजा से कहना कि
छैल बटाऊ और मोहना रानी मारे गए।
हो सके, तो वे उनकी चिता की भस्म गंगा में प्रवाहित करवा दें.

कहते हैं,
राजा स्वयं आये,
समस्त दृश्य देख विचलित हुए,
अंतिम संस्कार की वांछित व्यवस्था करवाई.
चिता की भस्म जब गंगा में प्रवाहित करने के लिए लाई गई,
तब सारी कोशिशों के बाद भी छैल और मोहना के अस्थिशेष व भस्म अलग न हो पाए.
जब लोग उनकी भस्म प्रवाहित कर चले गए,
तभी वहाँ से गुजरते शिव-पार्वती की दृष्टि उन पर पड़ी.
पार्वती ने आग्रह किया कि
वे दोनों को जीवित कर दें.
पार्वती ने छैल और मोहना के अस्थिशेष व भस्म पर अपनी कनिष्ठिका उँगली से अमृत छिड़का और शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया.

परंतु पार्वती ने कहा कि
अभी इनकी समस्या हल नहीं हुई.
इठौरा राजा छैल से मोहना रानी को माँगेगा.
अब शिव ने एक और मोहना तैयार कर दी.
एक वास्तविक और दूसरी माया की.

माया की मोहना को पार्वती ने एक लकड़ी के पिटारे में बंद कर दिया.
छैल अब दो मोहना के साथ अपने नगर लौटा.
राजा ने उससे मोहना के चित्र के विषय में पूछा,
तो छैल ने कहा कि
वह मोहना का चित्र नहीं, वास्तविक मोहना को ही ले आया है।
यह कह कर उसने पिटारे से मोहना रानी को निकाल कर प्रस्तुत कर दिया.

राजा ने अपने वचन के मुताबिक छैल बटाऊ को आधा राज्य दिया,
माया की मोहना वहाँ रही,
असली मोहना छैल बटाऊ के साथ रही.
अंत में छैल बटाऊ और मोहना रानी दोनों सदा के लिए एक दूसरे के हो गए.

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"छैल बटाऊ-मोहना रानी" की पहली कहानी छत्तीसगढ़ में लोककथा के रूप में रही है,
यह कथा वहाँ "मोहना दे गोरी कईना व राड़ी माई बटाऊ टुरा उर्फ छैल बटोही की कहानी" के रूप में प्रसिद्ध रही है।

दूसरी कहानी संभवतः उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र के मूल की है।
इसमें नाम समान हैं, पर कथा भिन्न है।
इससे भी बढ़ कर बात यह है कि
इस रूपांतर में मोहना का चरित्र बहुत बदल जाता है।
उन्नीसवीं सदी के प्रसिद्ध लोककथाविद् व Folktales from Northern India के लेखक पंडित राम गरीब चौबे व विलियम क्रुक द्वारा भी इस कथा को संकलित किया गया था, जिसे बहुत बाद में प्राप्त होने पर साधना नयथानी द्वारा संपादित कर In Quest of Indian folktales के नाम से प्रकाशित किया गया है। इस कहानी को उन्होंने कानपुर के ग्रामीण पुत्ती लोध से सुना था.

दोनों ही कहानियाँ संभवतः मुगल काल से पूर्व की हैं।
क्योंकि अनेक मुगलकालीन चित्रों में छैल व मोहना की कहानी का प्रभाव दिखता है।
यहाँ तक कि जिस कहानी में अकबर का जिक्र जिसमें है, वह भी किसी पुरानी कहानी में बाद का जोड़ है.
संभव है, यह लोकसामान्य में तत्समय बहुत लोकप्रिय रही हो.
पुराने समय में इनकी कथा पर नाटक रचे जाने के प्रचुर साक्ष्य हैं.
यह हिंदी रंगमंच के कुछ प्रारंभिक नाटकों में शुमार है।
पूरने नाटकों में बीच-बीच में कुछ छंद या गीत भी हैं.
प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा ने इनकी कथा पर एक चित्र भी बनाया है।
वर्तमान में यह कथा विस्मृत सी हो गई है।

कथा के कुछ रूपांतरों में मोहना की सास ने ही मोहना के पति को सूचना भिजवाई. वहाँ उसके साथ उसका देवर भी है।
कुछ रूपांतरों में मोहना का नाम गोरिया है.
लेखक को कथा के दोनों रूपों का अंतिम अंश समुचित रूप में नहीं मिल पाया,
अंतिम घटनाएँ बहुत संक्षिप्त हैं, जो मूलतः कुछ और विस्तार लिए हो सकती हैं। जो मिला, यथावत् प्रस्तुत है.

"छैल बटाऊ-मोहना रानी" की कहानी में दक्षिण भारत की वीरन-बोम्मि" की कहानी से भी साम्य दिख जाता है। दोनों ही कहानियों में नायक की स्थिति बहुत कुछ समान है। कहानी में कुछ सीमा तक सोरठी-बृजभार की भी छाया दिख सकती है।

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास

एक पुरानी उक्ति है- "आप सोचते हैं कि आप कर सकते हैं या फिर आप सोचते हैं कि आप नहीं कर सकते हैंआप दोनों ही मामलों में सही सिद्ध होंगे।’’
            आत्मविश्वास साधन भी हैसाधना भी और साधना की सिद्धि भी। गैब्रियल मार्सल के शब्दों में यह ’कुछ पाने’ (To have) की बजाय तद्रूप ’बन जाने’ (To Be) की भावना है। आत्मविश्वास में अंतस् की पुकार हैअंतर्तम की प्रतिबद्धता है। प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री एच.एच. प्राइस ने कहा है- आदमी के विश्वासों में बड़ा फर्क है। कुछ "विहित विश्वास’’ (Belief that) हैजो बस बाहर की सूचना की तरह हैज्ञात तथ्य की तरह हैकिन्तु कुछ विश्वास "निहित विश्वास’’ (Belief in) है। आत्मविश्वास वस्तुतः अन्तर्निहित विश्वास है।
            
आत्मविश्वास क्या हैइसे समझने के लिए यह पुरानी कहानी महत्वपूर्ण है:-
            किसी समय में संतों का एक समूह अपने नृत्य साधना के लिए प्रसिद्ध था - मत्त सूफियों की तरहभक्त वैष्णवों की तरहअनुरक्त गोपियों की तरह। कहते हैंजब वे नाचतेबादल छा जातेवर्षा होने लगती। बहुतेरे नर्तकों और दर्शकों ने उस नृत्य साधना को सीखने की कोशिश कीउस संगीत पर मत्त नृत्य करने की कोशिश कीलेकिन बादल न छातेवर्षा न होती।
            सबने सोचासंतों के पास गुप्त मंत्र हैकोई रहस्यमय सिद्धि है। किसी साधक ने जब हठपूर्वक पूछातो वे बोले - "कैसी मंत्र साधनाकैसी नृत्य सिद्धि ? हम तो बस इस विश्वास के साथ नृत्य करते हैं कि हम नृत्य करेंगे तो वर्षा अवश्य होगी और इस समर्पण के साथ नृत्य करते हैं कि हम तब तक नृत्य करेंगेजब तक वर्षा नहीं होगी।’’
            आत्मविश्वास में बस विश्वास ही नहींसमर्पण भी हैउसमें किसी अन्य से प्रतियोगिता नहींबस स्वयं के स्तर पर प्रतिबद्धता है।
            आत्मविश्वास एक जादुई पारस पत्थर की तरह हैपरन्तु समस्या यह है कि यह सर्वाधिक प्रबुद्धों के पास नहीं हैवरन् सर्वाधिक दृष्टहीनों के पास है। अंग्रेजी की एक कहावत हैजिसका आशय है - "बुद्धिमान जिस रास्ते पर चलने में सोच-विचार कर रहे होते हैंमूर्ख उसे एक छलांग में पार कर जाते हैं।’’ इसे ही एलेक्जे़न्डर पोप कहते थे - "फरिश्ते भी जहां पैर धरने में डगमगा रहे होते हैंमूढ वहां दौड लगा रहे होते हैं।’’ (Fools Rush in where Angels fear to tread)
            आत्मविश्वास में रूपान्तरणकारी शक्ति हैजो चाहेंउसे कर जाने की शक्ति हैपर हमारी बौद्धिकता की विडम्बना ही यह है कि वह सर्वाधिक द्वंद्वग्रस्त होती हैसर्वाधिक दुविधापूर्ण होती है। आत्मविश्वास में आवश्यक  है- विवेक की दृष्टिपूर्णता भी और भावना की संपूर्णता भीअन्यथा वह अंध-पंगु बन जाने को अभिशप्त है।
            एक प्रचलित शब्द है- ’इच्छा-शक्ति’ और किसी ’इच्छा’ के ’शक्ति’ बनने के बीच जो अंतर्निहित तत्व हैवह आत्मविश्वास ही है। इच्छाएं सबमें जन्म लेती हैपर वे सबमें अदम्य आकांक्षा या पैशन का रूप नहीं लेतीं या फिर कहें कि कामनाएं सबमें अपनी ऊर्जा भरती हैंलेकिन सबमें वे स्पष्ट विजन का रूप नहीं लेती। प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक शापेनहावर प्रायः कहते थे - ’’मनुष्य जो चाहेवह पा सकता हैलेकिन जो चाहेवह चाह नहीं सकता’’।
            क्रिकेट के लिए जो चाह एक क्रिकेटर में पैदा हो जाती हैअभिनय के लिए जो पैशन अभिनेता में जाग जाता हैविराट के लिए जो विज़न एड युगद्रष्टा में जन्म ले लेता हैवह सबमें नहीं जन्मता। यह अंतर्निहित प्रेरणा कुछ आंतरिक प्रकृति से सर्जित होती है और कुछ बाह्य परिस्थिति से निर्मित होती हैजिसे अंग्रेजी में हम नेचर (Nature) बनाम नर्चर (Nurture) का नाम देते हैं।
            आत्मविश्वास एक मनःस्थिति हैजो प्रकृतिसंस्कृतिपरिस्थितिनियति किसी के भी विरूद्ध खड़ी हो सकती है और फिर किसी के साथ भी खड़ी हो सकती है। आवश्यक नहीं कि उसका मार्ग नया होपर जिसके साथ भी होती हैउसकी अपनी नई ऊर्जा साथ खड़ी होती है।
            आत्मविश्वास में जितना विश्वास अपनी और अपने पास की ज्ञात प्रकृति पर होता हैउतना ही विश्वास उसके पूरक अज्ञात जगत् पर भी होता है। तुलसीदास ने शिव-शक्ति की कल्पना क्रमशः श्रद्धा और विश्वास के रूप में की है - ’’भवानी-शंकरौ वन्दे श्रद्धा-विश्वास-रूपिणौ’’ (रामचरित मानस-1/2) संदर्भार्थ यह है कि आत्मविश्वास में जितना आवश्यक विश्वास हैउतनी ही महत्वपूर्ण श्रद्धा है। श्रद्धा का अर्थ भक्ति नहींभरोसा या ट्रस्ट है। संस्कृत में यह शब्द ’श्रत्’ अव्यय में ’धा’ धातु लगाने से बनता हैजिसका अर्थ है भावनापूर्वक धारण करना और भावना इतनी गहरी हो कि वह प्रतिकूल स्थितियों में भी संभावनाओं के आकाश में बाहें फैलाए रखेविपरीत परिस्थितियों में भी अपनी अभिलाषाओं में आशाओं के दीप जलाए रखेतमाम वेदनाओं को सहकर भी संवेदनाओं को बचाए रखे।
            आत्मविश्वास में एक बालसुलभ सहज विश्वास हैएक युवजनोचित प्रतिबद्धता है और एक प्रौढजनोचित दृष्टिपरकता है। एक कहानी से इसे स्पष्ट किया जा सकता है -
            किसी जगह लोगों ने वर्षा के लिए यज्ञ का आयोजन किया। उन्हें विश्वास दिलाया गया था कि यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ वर्षा होगी।
            यज्ञ पूर्ण हुआपरन्तु वर्षा न हुई। कुछ आश्चर्यजनक रूप से पास के गांव में मूसलाधार बारिश हुई। यज्ञायोजकों और पुरोहितों ने कहा- "प्रभुहमने जो इतनी साधना कीजो समर्पण कियाजो श्रद्धा दिखाईजो विश्वास कियाक्या वह निरर्थक था ?’’
            कहते हैंरात में सभी को सामूहिक स्वप्न आया। स्वप्न में सभी बच्चों के बीच थे। किसी फरिश्ते ने उन्हें उद्बोधित करते हुए कहा- "तुम कहते होतुममे श्रद्धा हैपरन्तु क्या तुमने अपने संसार को उस विस्मय और आनन्द से देखा हैजिस भाव से वो बालक फूलों-पत्थरों को देख रहा है ?’’
            तुम कहते होतुममे समर्पण हैलेकिन क्या तुम्हारे समर्पण में वह तन्मयता और निष्कामना रही हैजो नदी के तट पर रेत के घरौंदे बनाते बच्चे में दिखती है ?
            तुम कहते होतुम भरोसा रखते होपर क्या कभी किसी शिखर से फिसलते समय तुम्हारे भरोसे में वैसी निश्चिंतता व वैसा हास्य रहा हैजो माँ द्वारा उछाले गए शिशु के चेहरे पर है ?
            और तुम कहते हो तुममें विश्वास हैलेकिन क्या यज्ञ करते समय तुम्हारे मन में वह विश्वास थाजो बारिश वाले गांव के उस बच्चे में दिखाजो पूर्णाहुति के दिन अपनी दादी के लिए छतरी ले आया थाताकि वे अगर यज्ञ में गईतो भींगे नहीं।

            इसलिए जब भी आत्मविश्वास को परखेंयह अवश्य देखें उसके विश्वास में "आत्म’’ कितना है और आत्मविश्वास में "आत्मा’’ कितनी है। आत्मविश्वास वह भूमि हैजो आत्माभिव्यक्ति के आकाश में शाखाएं फैलाती है। वह बाह्य आरोपण नहींस्वयं बीज का प्रस्फुटन है और इसी लिए वह एक समय के बाद आनंद का सूत्र ही नहींस्वयं आनंद का स्वरूप भी बन जाता है।