सोमवार, 16 नवंबर 2015

गोपूजा : गोवर्धन पूजा



"गोपूजा : गोवर्धन पूजा"


गाय पहले प्यास बुझाती थी,
अब वह भूख मिटाती है.
पहले वह हमें जीवन देती थी,
अब वह हमारे लिए जीवन देती है.

गाय कुछ के लिए मातृवत् है
और कुछ के लिए भोज्यवत्.
तर्क बस इतना है-
मानों तो मैं गंगा माँ हूँ,
ना मानो तो बहता पानी.

मांसाहार मानव की आदिम वृत्ति है,
परंतु परिष्कृत वृत्ति नहीं.
क्योंकि मांसभक्षण एक प्रकार की रक्तपिपासा है.

यह बुभुक्षा निरंतर बढ़ती जा रही है,
क्योंकि संपन्नता और मांसभक्षिता समानुपातिक रूप से बढ़ते हैं.

सोचता हूँ-
जो आदमी के लिए मछली का काँटा है,
वह मछली के लिए उसकी रीढ़ है.
जो आदमी के लिए एक वक्त का जायका है,
वह किसी की पूरी जिंदगी है.

मनुष्य की प्रजाति मांसाहार और शाकाहार के बीच में खड़ी है---
मानव के दाँत बताते हैं,
वह मांसाहारी भी है.
मानव की आँत बताते हैं,
वह शाकाहारी ही है.
यहाँ एक अंग्रेज़ लेखक का प्रतितर्क है-
एक बच्चे को एक साथ खरगोश और सेब दीजिए,
यदि वह सेब से खेलता और खरगोश को खाता मिले,
मैं मान लूँगा कि मनुष्य मूलत: मांसाहारी है.

आज नब्बे फीसदी आबादी मांसभक्षी है,
क्योंकि उनकी प्रकृति या संस्कृति से अनिवार्य बनाती है.
यहाँ तक कि बुद्ध जैसे अहिंसावादी के दर्शन में भी कालांतर में थेरवादियों ने
त्रिकोटिपरिशुद्धता के आधार पर
मांसाहार को अनुमत कर दिया.

वैसे जो मांसाहारी हैं,
उनमें पशुप्रेम कम हो ऐसा नहीं है,
बस समस्या यह है कि
खाते समय उन्हें हिंसा होने का बोध ही नहीं होता.
यह भी सच है कि यदि मांसभक्षी लोगों को
स्वयं जीव की हत्या कर मांसभक्षण करने को कह दिया जाये,
तो तीन चौथाई मांसाहारी शाकाहारी हो जाएँ.

मांसाहार का तथ्य व शाकाहार का मूल्य दोनों अपनी अपनी जगह हैं.
दुर्योगवश इसे धार्मिक राजनीतिक रंग दे दिया गया,
और दोनों ही जगह कुछ मूर्खतम लोग उपलब्ध हैं.

वैसे बकरीद यदि संसार का सबसे बड़ा धार्मिक बलिविधान है,
तो हिंदू परंपरा के ही अंदर विश्व का सबसे बड़ा पशुबलि मेला नेपाल में गाधिमाई के मेले के रूप में लगता रहा है,
जिसपर हाल ही में प्रतिबंध लगा है. कई हिंदू संत मांसाहारी रहे हैं, यहाँ तक कि देव भी.
इसलिए यहाँ धर्म को लाना बेमानी है.

बिना किसी अतिरिक्त टिप्पणी के
एक मुसलमान संत रज्जब के कुछ दोहे-

पंच वक्त जो बाँग दे, वह तो दीनी यार,
सो मुरगा क्यों मारिये, काजी करो विचार.

गोस्फंद गो मेष माजूर हमशीर सब भाई,
रज्जब ऐन अजीज बोलिए, गाफिल गोश्त खाई.

नाम सगौती बोलिए, कहिसे के माँ अंश,
सो रज्जब क्यों खाइये, प्रत्यक्ष अपना वंश.


अंत में
"बकरी पाती खात है, ताकी काढ़ी खाल,
जो नर बकरी खात हैं, ताको कौन हवाल."
कहने वाले कबीर की ही पंक्ति है-
"कबिरा तेरी झोपड़ी, गलकटियन के पास.
जो करेगा सो भरेगा, तू क्यों होए उदास."