मंगलवार, 22 मई 2018

रक्तदान : प्रवाह धड़कन का


रक्त बहता है,
रगों में, धमनियों में,
दिल की धड़कनों से होकर,
फेफड़ों की हवा और ऊर्जा लेकर.

और
जब तक लहू दौड़ता है,
जिंदगी चलती है
और
कभी जरा बहा कि
मौत से फासला नहीं रह जाता.

विज्ञान कहता है,
खून एक सौ बीस दिन में नया हो जाता है.
ये जो चालीस पचास लाख लाल रंग के कण हैं,
रोज मरते हैं, नये बनते हैं
और
अगर खून दिया जाए,
तो उनके नये होने की दर जरा तेज हो जाती है।

और
फलसफा कहता है कि
रक्तदान महादान होता है,
बस इसलिए नहीं कि
अगर किसी मरते हुए को खून दे दिया जाए,
तो वह प्राणदान पा जाता है,
वरन् इसलिए भी कि
यही वह दान है,
जो हमसे भर नहीं आता,
हममें से होकर आता है।
हमारा अर्जन बनकर नहीं जाता,
हमारा अंश बन कर जाता है।

ख़लील ज़ीब्रान की एक विश्वप्रसिद्ध कृति है-
प्रॉफेट.
उसमें उन्होने दान के संबंध में कहा है
You give but little when you give of your possessions.
It is when you give of yourself that you truly give.

खून लाल है क्योंकि इसमे लोहा है,
इसीलिए इसे लहू कहा गया.
पर यह कभी पिघला सोना बन जाता है,
तब जबकि यह किसी की जिंदगी की कीमत बन जाता है.

कई बार वह वो दे जाता है,
जो माँ के आँसू नहीं दे पाते,
जो चाहने वालों की दुआएँ नहीं दे पातीं.

चिकित्सा विज्ञान ने दान की सीमाएँ बढ़ा दी हैं,
अब हम अंगदान कर सकते हैं, देह दान कर सकते हैं.
उसके आगे तो यह बहुत छोटा दान है,
पर मर रहे इंसान के लिए तो यह प्राणदान है,
उसके लिए तो हमीं दधीचि हैं.

विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है,
हड्डी की जगह मेटल इम्प्लंटस गये हैं,
हृदय भी कृत्रिम होने की ओर है और कृत्रिम मशीनों से चल रहा है,
किडनी भी खराब हो तो डायलीसिस की मशीनें संभाल लेती हैं,
पर खून का अब भी कोई सार्थक विकल्प नहीं मिला पाया है,
इसलिए भी रक्तदान महादान बना रहेगा,

कहते हैं,
लम्हे अक्सर सदियाँ तय कर देते हैं,
खून के लिए दिए लम्हे तो जाने कितनों की ज़िंदगियाँ तय कर देते हैं.
इस बहाने अपने कुछ पल में हम किसी को जिंदगी के कई साल दे सकते हैं.
और फिर अस्तित्व की एक खूबसूरत शृंखला बना लेते हैं,
जो हमारे बाद भी प्रवाह्मान रहता है-
जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी.

खून की फितरत में है, दौड़ना, गुजरना और
जब वह हमारी रगों से किसी और की रगों में दौड़ता है
तब सबसे चटख और शोख होता है, तब उसमें जिंदगी दौड़ती है,
उस हृदय की करुणा लिए, जिससे वह पल प्रतिपल गुजर कर शुद्ध होता है.

कहते हैं कि
दो तो ऐसे कि
बाएँ हाथ को भी पता ना चले कि दाएँ ने दिया क्या है.
दान बता कर दिया तो आधा रहा,
जता कर दिया तो चौथाई हो गया.
आपको पता नहीं होगा की ये खून किसकी जिंदगी में एक लौ
लेकर गया है.
यह ज्ञात से
अज्ञात से तक जाता है,
इसलिए यह महादान भी है और महान दर्शन भी.

हम किसी को खून दें, वह किसी को जिंदगी देगा.
हमारी जिंदगी का एक क़तरा किसी की पूरी जिंदगी बन जाता है.
यह हमारा श्रेष्ठ देय है,
क्योंकि देने वाले के लिए बेमोल है, पाने वाले के लिए अनमोल.

देनेवाले को हम दानवीर मानें मानें,
पानेवाले के लिए तो वह महानायक होता ही है,
कुछ कुछ रब सा,
अदृश्य भी, जीवन देने वाला भी.
फिर देनेवाला जाने किन अनजानी दुआओं और कृतज्ञताओं का हिस्सा बन जाता है,
उसे खुद पता नहीं होता.

जिंदगी मे अच्छे काम करने के मौके कम मिलते हैं,
और जब मिलते हैं हम अक्सर चूक जाते हैं.



तो अवसर निकालें,
इस महादान के लिए,
निकलें हम,
किसी को जिंदगी देने के लिए.

ग़ालिब का एक शेर है-
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जो आँखों से ही टपका, तो लहू क्या है.

 कुछ बदल कर हम यूँ कह सकते हैं-
जो रगों से रगों तक ही ना पहुँचा तो लहू क्या है,

रक्तदान एक सुचक्र है,
कौन जाने आज हम किसी को दे रहे हों,
कल कोई हमें दे रहा हो.
जीवन के कुछ महानियम हैं,
दी हुई चीज़ें अक्सर लौट आती हैं,
किसी और रूप में,
बस हम पहचान नहीं पाते.

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