मंगलवार, 22 मई 2018

वन्दे मातरम्...!


वन्दे मातरम्...!

माँ !
तुम इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति हो और इस संसार की सबसे महत्वपूर्ण इकाई भी। तुम जीवन की स्रोत हो क्योंकि जीवन तुम्हीं से होकर जन्म पाता है और जन्म से आगे भी दूर तक तुम्हारी ही छाया में पलता है। तब तक जब तक कि हम दोनों में से एक की मृत्यु न हो जाए। छाया निश्चय ही बचपन की अनिवार्यता है, पर छाया से मुक्त होना ही यौवन की पहचान है।(1) तुम भी तो इस छाया से अलग हुई थी और कहीं दूर जाकर तुमने अपनी जड़ें जमाई थी। माँ! मैं आज तुझसे दूर होकर भी तेरे निकट आना चाहता हूँ, ताकि हमारे जीवन का मूल अपने जीवन की जड़ता से मुक्त हो सके।(2)
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(1)   Kehlil Gibran- The love of a parent for child is the love that should grow towards separation.
(2) Erich Fromm- The mother-child relationship is paradoxical and in a sense, tragic. It requires the most intense love on the mother side, yet this very love must help the child grow away from the mother and to become fully independent.

माँ !
जीवन जिस संसर्ग से उत्पन्न होता है, वही तुम्हारे उत्सर्ग से पावन हो जाता है। मातृत्व ही तुम्हारे स्त्रीत्व को गरिमा दे देता है, अन्यथा तुम भी पुरुष की तरह बस एक साधारण मानव होती।(1) अपनी इस महत्ता के बावजूद तुम इतनी साधारण हो कि इसके कसीदे पढ़ने की जरूरत नहीं, इसके गौरव ग्रन्थ गढ़ने की आवश्यकता नहीं। इस जीवन ने ही जीवन के इस उत्स को जैविक रुप देकर सहज और सुखद बना दिया है। फिर भी मैं आभारी हूँ, उससे भी अधिक जितनी कोई भी माँ अपनी माँ की रही होगी।
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(1)  Nancy Friday - When I stopped seeing my mother with the eye of child, I saw the woman, who helped me give birth to myself.
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माँ !
माँ बनना एक अत्यधिक त्रासद व सुखद अनुभव है। यह सृष्टि की आवश्यकता और उपलब्धि भी है। यह प्रकृति प्रदत्त है और इसीलिए उसमें प्रकृति का अंधापन भी है। इसी कारण मातृत्व सदा से संकटपूर्ण रहा है। पहले वह स्वयं के लिए असुरक्षित था, अब वह संसार के लिए अनियंत्रित हो गया है। माँ बनना अच्छा है, पर माँ बनते चले जाना ? अब तो संसार की पुकार है- तुम एक की माँ बनना या फिर सबकी माँ बनने का हृदय रखना, किन्तु कभी कइयों की माँ बनने का स्वप्न न देखना।
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माँ !
आडम्बर और विडम्बना में जीना संभवतः स्त्री की नियति है। ऑस्कर वाइल्ड ने कहा है- ‘‘सभी महिलाएँ अपनी माँ की तरह होती हैं, यह उनकी त्रासदी है और कोई भी पुरुष उसकी तरह नहीं होता, यह पुरुष की त्रासदी है।“(1) ‘हम जिस समाज में जीते हैं, उसमें स्त्री जन्मती नहीं, बल्कि वह स्त्री बना दी जाती है।’(2) निश्चय ही पुरुष प्रभुत्ववादी समाज में तुम्हें उसके अनुरूप ढाल दिया जाता है। परन्तु युग बदल रहा है। तुम कब परम्परा की वाहक होना छोड़कर अपने व्यक्तित्व की उद्धारक होना स्वीकार करोगी ? पुरुष के रंग में रँगो, यह तो अनुचित नहीं, किन्तु पुरुष के ढंग से चलो, यह कहाँ तक उचित है?
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(1)   Oscar Wilde- All women become like their mothers, that is their tragedy. No man, does that is his. - A woman of no importance
 (2)   Simone de Beauvoir - One is not born woman, one becomes one. - The Second sex
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माँ !

पुत्र कुपुत्र भी हो, तो माता कुमाता नहीं होती।(1) किन्तु पुत्रवधू सत्पुत्रवधू भी हो, तो माता कभी स्वयं को विमाता से अधिक नहीं सिद्ध कर पाती। तुम स्वयं लक्ष्मी हो, अतः यदि तुम्हारे ही घर में कोई नई गृहलक्ष्मी आए, तो उसे तुम धनलक्ष्मी लाए बिना कैसे प्रवेश दे दोगी। यही कारण है कि प्रत्येक घर में सदा सास की जिह्वा पर सरस्वती और भुजाओं में दुर्गा विराजती रहती है। तभी तो परिहास में कहते हैं- सीता भी तुम्हारे ही भय से राम के साथ वन चली गई थीं, क्योंकि एक सास के साथ जब निर्वाह इतना कठिन है, तो कोई तीन सासों के साथ अकेले कैसे रह सकता है। काश कि कोई सास यह याद रख पाती कि वह भी कभी बहू थी और बहू भी कभी किसी की पुत्री थी।
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(1)     शंकराचार्य - कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि, माता कुमाता न भवति।
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माँ !
नवजात शिशु सदा से तुझे पुकारते रहे हैं।(1) किन्तु आज असंख्य अजन्मे शिशुओं की सदाएँ सुनाई पड़ रही हैं। इन अजात भ्रूणों की शत्रु क्या उनकी माँ स्वयं बनेगी ? स्त्री का व्यक्तित्व विखंडित तो था, किन्तु उसका पत्नीत्व और मातृत्व कभी इतना विभक्त नहीं हुआ था। युगों से आत्महत्या को अभिशप्त स्त्री ने अब अपने भीतर पल रहे स्त्रीत्व की भी हत्या करना सीख लिया है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मानवता ने प्रेम दिवस और बाल दिवस के साथ ही ‘स्तनपान दिवस‘ भी घोषित कर दिये हैं, ताकि कोई बच्चा माँ के जीवित रहते न मरे और न ही कभी बच्चों के होते माँ का मातृत्व मरे।
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(1)  Sophocles - Children are the anchors, that hold a mother to life.    
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माँ !
मेरे हृदय में चाहे जितने शल्य धँसे हों, मैं कभी उसके विरुद्ध नहीं रहा हूँ। विज्ञान ने जब मातृत्व न प्राप्त करने की शल्य चिकित्सा ढूँढी, थी, तब स्त्री को जीवन में पहली बार दैहिक स्वतंत्रता मिली थी। किन्तु इतिहास ने जब जीवित माँ की शल्य चिकित्सा कर पहली बार शिशु को जन्म देने का निर्णय दिया था, तब भी एक क्रांति हुई थी। जूलियस सीजर के इस निर्णय पर हम आज भी इसे “सीजेरियन ऑपरेशन कहते हैं क्योंकि उसने भी जन्म ऐसे ही पाया था। शायद उसे पता था- स्त्री बहुधा मातृत्व पाकर ही तृप्त होती है, अन्यथा वह भी कभी क्लियोपेट्रा बनने को अभिशप्त हो जाती है।
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माँ !
स्त्री निर्दोष है, क्योंकि उसके हर कृत्य के लिए पुरुष और उसके द्वारा निर्मित समाज दोषी है। परन्तु कौन तुम्हें स्त्रीमुक्ति विरोधी संतों की भक्ति को प्रेरित करता है? कौन तुम्हें पुत्रजन्म पर थालियाँ पीटने को उत्साहित करता है और कन्या शिशु की भ्रूणहत्या के लिए विवश करता है? कौन तुम्हें अपने ही पुत्र की तुलना में अपनी पुत्री को उसके अधिकारों से वंचित रखने और असमान व्यवहार करने की शिक्षा देता है? क्यों हर दहेज-हत्या में सास की भागीदारी होती है और कोई स्टोव-सिलेंडर सास पर नहीं फटता? माँ तुम्हारे पास उत्तर तो होंगे, पर तुम क्या स्वयं अंतर्मन में उत्तरदायित्व से बच पाओगी
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माँ !
इस संसार में मेरा तुमसे दूध और खून का संबंध है और इस कारण मैं कभी मातृ-ऋण से उऋण नहीं हो सकता। कहते हैं ईश्वर संसार को बना तो सकता था, किन्तु आगे उसे सँभाल नहीं सकता था इसलिए उसने माँ बनाई।(1) इसीलिए तो हम माँ और मातृभूमि दोनों को स्वर्ग से श्रेष्ठतर मानते हैं।(2) पर हम कब तक तेरे आँचल तले तोतली मातृभाषा में बात करते रहेंगे। आ, आज हम वसुधा के विशाल अंचल में चलें, क्योंकि वह तो तुम्हारी भी माँ है। संभवतः वही हमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ कहे बिना भी मातृत्व को ममत्व(3) से पृथक् करना सिखलाएगी।
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(1)  Quote- God cannot be everywhere and so he made mothers. - Anonymous
(2) वाल्मीकि - जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।
(3) ममत्व - मेरेपन की भावना, अहंकार का संबंधगत रूप। - शब्दकोश

माँ !
मैं माँ होने के मायने नहीं सिखलाता, क्योंकि मैं तो उस योग्य ही नहीं। मैं तो बस माँ को ‘बड़ी माँ’ बनते देखना चाह रहा हूँ। कल जब तुम बच्ची थी, तुम्हारे हाथ में अपनी गुड़िया थी। फिर जब तुम बड़ी हुई, तो तुम्हारी गोद में अपने बच्चे थे।(1) मैं चाहता हूं कि अपनों के लिए तुममें जो अपनापन था, वह परायों के लिए भी हो। तुम घर से ही नहीं, अपने आँगन की चहारदीवारी से भी बाहर निकलो; ताकि तुम देख सको कि तुम माँ होने से पहले एक स्त्री हो, एक स्त्री होने से पहले एक व्यक्ति हो और एक व्यक्ति होने से पहले एक मानव हो। दुनिया भी यह जान सके कि मानवता आदमियत से ज्यादा हव्वाइयत(2) में होती है।
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(1) Quote- There is only one pretty child in the world and every mother has it.- Chinese Proverb
(2) हव्वाइयत- पहली स्त्री हव्वा की परंपरा, जैसे- आदमियत पहले पुरुष आदम की परंपरा है।
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माँ !
बच्चा न केवल साढ़े नौ माह तक पेट में पलता है और न ही केवल साल दो साल तक गोद में खेलता है। भीतर की नाल कट भी जाए और ऊपर का स्तनपान छूट भी जाए, तब भी वह उसके दिल में ही जीता जागता रहता है।(1) उसकी पुलकित पलकों की छाया में बालक के सपने तब तक पलते और जीते रहेंगे जब तक वह जीती है और उसका बालक भी तब तक बालक ही रहेगा, भले ही वह माँ की आँखों के सामने ही वृद्ध होकर काल-कवलित हो जाए। पर माँ, कब तक तू अपनों, बस अपनों के लिए जीएगी; कभी तो तू परायों के लिए न सही, अपने लिए तो जी।
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(1) H. W. Beecher - The babe first feeds upon the mother’s bosom, but he is always on her heart.
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माँ !
कहते है बेटे बँट भी जाएँ, तो माँ नहीं बँटती। कहावतें भी शायद तुम्हारी तरह ही मीठी और भोली होती है, अन्यथा किसे नहीं पता कि इस संसार में मातृत्व भी कई स्तरों पर विभाजित और विखंडित होता है। क्या विश्व कभी अविवाहित मातृत्व को भी वही गौरव दे पाया है, जो विवाहित मातृत्व को मिलता रहा है? और क्या तुमने कभी पुत्री होने के मातृत्व को भी उसी स्वाभिमान के साथ अपनाया है, जितनी श्लाघा से पुत्र होने के मातृत्व को जतलाया था। मैं तो उस विश्व में जन्म लेना चाहता हूँ माँ, जहाँ मातृत्व पति की वैधानिकता अथवा संतान की लैंगिकता से न तो सम्मानित होता हो और न ही अपमानित।
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माँ !
तुमने जब पुरुष को कृषि की कला सिखलाई थी, तो यह कैसे सोच लिया कि वह शिकार के कौशल भूल जाएगा। स्त्री जब हिंसा की मृगमरीचिका में पड़ती भी है, तो अंततः अशोक की छाया में शोकसंतप्त रहकर अग्निप्रवेश की बाट जोहती है, किन्तु पुरुष जब अशोक बनकर शांति का उपदेशक भी बनता है, तो मृग-मयूर उसके भोजन बने रहते हैं। तुम कभी स्वेच्छा से, तो कभी अनिच्छा से यूँ ही भोग्या बनती रहोगी और यों ही भोगती रहोगी, क्योंकि तुम्हें कोमल शय्या चाहिए और उसे कोमल मांस। काश, जिस तरह तुम अपनी कठोर नियति सह पाती हो, उसी तरह मेरे कठोर वचन भी सह पाती और उसे संसार को सुना पाती।
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माँ !
मैंने तुम्हारी बाँहों के पालने में सोते हुए सपने देखे हैं(1) और पाँवों के हिंडोले पर झूलते हुए दुनिया देखी है।(2) जब तुम मेरी बाँहों में मनके और गले में चाँद-सूरज जडे गंडे-ताबीज डालती थी, तो मुझे यह कहाँ पता था कि तुम्हारा जीवन भी ऐसे ही सूत्रों से बँधा है। सबसे पहले तुमने बहन बनकर रक्षा-सूत्र बाँधना सीखा और फिर पत्नी बनकर मंगल-सूत्र पहनना, अब मेरी रक्षा व मंगलकामना के लिए इतने सूत्र जोड़ रही हो। देखो ये मन के मनके होते ही इसलिए हैं कि इन्हें भीतर से पिरोकर ऊपर से बाँध दिया जाए। अगर कहीं तू भी इससे बँध और बिंध गई, तो कभी चिता पर और कभी चूल्हे में यूँ ही जलती रहेगी; मोम बनकर यूँ ही गलती और पिघलती रहेगी।
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(1) Victor Hugo - A mother’s arm are made of tenderness and children sleep soundly in them.
       
(2) J. R. Lowell - The best academy, a mother’s knee.      

माँ !
यह पुरुष संसार सदा से तुम्हें कामिनी के रूप में दुर्भावनापूर्ण, पत्नी के रूप में संभावनापूर्ण तथा माता के रूप में भावनापूर्ण दृष्टि से देखता रहा है, परंतु मेरी ही दृष्टि में तुम न जाने क्यों अपूर्ण और दुःखपूर्ण दृष्टिगोचर होती रही हो। वस्तुतः संसार तो सुंदर और सुघड़ स्त्री चाहता है, सफल और सुदृढ़ स्त्री नहीं। इसलिए जब कोई कहे कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है, तो इस मिथक से खुश मत होना; बल्कि उससे यह यथार्थ कहना कि असंख्य असफल स्त्रियाँ केवल इसलिए असफल हैं, क्योंकि असंख्य पुरुष उसके आगे हाथ उठाकर और उसके पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। पर तुम शायद इस प्रवंचना की मधुर तृप्ति से मुक्त होने का साहस नहीं कर पाओगी, अन्यथा तुम आज वहाँ होने से वंचित नहीं होती, जहाँ तुम मेरे होने के सपने देखती हो।
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माँ !
तुम पतिव्रता और पुत्रवती स्त्री हो और सदियों से माँ बनने के लिए पति व पुत्र अपरिहार्य शर्त भी रहे हैं। एक कारण है तो दूसरा परिणाम, पर मातृत्व की जैविक अनिवार्यताएँ विज्ञान के आघात-संघात में टूटी सी जा रही हैं। स्त्री को गर्भधारण करने के लिए अब न तो पति आवश्यक है और न ही यह आवश्यक है कि गर्भ में पल रहा पुत्र उसका अपना ही हो या अपना पुत्र उसके ही गर्भ में पले। दूध के रिश्ते पहले भी धाय माताओं के हवाले सुपुर्द होते रहें है, मगर खून के रिश्ते तो कभी इस तरह न टूटे-न छूटे, न कटे-न बँटे। मानता हूँ, टेस्ट-टयूब हो या एंक्यूबेटर, अभी ये सभी बच्चे को गर्भमुक्त नहीं कर पाए हैं, परन्तु शाश्वत विशेष पुरुषत्व ही जब निरर्थक हो चुका, तो मातृत्व का यह अंतिम अवशेष भी कब तक निःशेष होने से बचा रह पाएगा।

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